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चिंता चिता एक समाना

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लिखने एवं देखने में चिंता और चिता में एक बिंदु मात्र का फर्क है !! जब इस धरा पर मौजूद हर वस्तु एवं व्यक्ति का समय पूर्व निर्धारित है तो एक बिंदु मात्र की क्या बिसात !! आज की भौतिकता बाहुल्य दुनिया में हर कोई भौतिक वस्तु , सुविधा पाने की जद में पड़ा हुआ है यह बिना सोचे कि क्या यदि वह वस्तु या सुविधा प्राप्त हो जायेगी तो मानसिक शांति मिल जाएगी ?? हर कोई सोचता है हाँ और हर किसी के सोचने का एक अपना नजरिया भी है उस द्रष्टिकोण से यह सही जान पड़ता है लेकिन समस्या तब खड़ी हो जाती है जब परिवार, समाज, नैतिक मूल्यों की बलि देकर भौतिक संसाधन, रुतबा, सुविधा पाने की होड़ लगे | यकीनन हर किसी को अपना निर्णय सही लगता है| यहाँ पर आवश्यकता आती है चिंतन की | याद रखिये “चिंतन अच्छा है परन्तु चिंता बुरी |” सबकी अपनी अपनी समस्याएं है धन प्राप्ति के लिए अंधी भाग दौड़ मची हुई है लोग रात में देर से सोते हैं और सुबह अलार्म लगा कर उठते हैं अलार्म लगाने और बजने को छोड़ दिया जाये तो बाकी पूरा समय सिर्फ सिर्फ धन प्राप्ति के लिए समर्पित | कर्म करना बुरा नहीं है लेकिन किसी व्यक्ति (वास्तविक या फिल्म का काल्पनिक किरदार ) के जीवन शैली की नक़ल करके उसकी प्राप्ति हेतु परिवार, नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर कर्म करना कतई स्वीकार्य नहीं है | यहाँ दस बीस मिनट चिंतन , ध्यान को देना आवश्यक है | हो सकता सोशल मीडिया पर किसी की जीवन शैली आपसे अलग हो यहाँ याद रखने योग्य बात यह है कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं | याद रखिये या लिख कर रख लीजिये जो आपको सोशल मीडिया पर या फिल्मों में दिख रहा है वैसा वास्तविकता में है कतई नहीं | परिवार की बात चली है तो चलिए संयुक्त परिवारों कि घटी संख्या पर भी एक निगाह डालते हैं | देश में मात्र 16 प्रतिशत संयुक्त परिवार बचे हैं और ये संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है | कारण सिर्फ एक आवश्यकता से अधिक पाने की लालसा !! यह वाकई चिंताजनक है कि हमारा देश भारत जो कभी संयुक्त परिवारों के कारण संस्कारों में शीर्ष पर था आज संस्कारों का पतन हो रहा है जिसका प्रमुख कारण यही है | आधे भारतीय आज तनाव में जीते हैं जिनमें से 26 प्रतिशत अपने मौजूदा काम/नौकरी के कारण और 17 प्रतिशत आर्थिक जिम्मेदारियों के कारण और 14 प्रतिशत पारिवारिक कारणों से चिंतित रहते है या यूँ कहें तनाव में रहते हैं | अगर काम/नौकरी सिर्फ पैसे के लिए कर रहे हैं तो कुछ तनाव रहेगा ही; इससे निजात पाने का सिर्फ एक ही तरीका है काम को जिम्मेदारी मानकर मन से किया जाये जिम्मेदारी का मतलब जो भी काम कर रहे हैं उसे अपना मानकर किया जाये तब उस काम में आनंद आएगा अन्यथा थोडा भी काम बोझा बन जायेगा |

सबसे जरूरी बात यहाँ यह है कि अपने ऑफिस का काम और घर का काम अलग -अलग रखिये | अगर घर पर ऑफिस या ऑफिस पर घर का काम करेंगे तो हालिया शोधों के अनुसार ना चाहते हुए भी मोनोविज्ञान के अनुसार से तनाव होगा ।

एक और प्रमुख कारण है कि आज लोग दिखावे की दुनिया में जी रहे हैं। जो कहीं ज्यादा खतरनाक है। कभी भीड़ में नजर घुमाइए लगभग हर इंसान अपने मोबाइल फोन पर व्हाट्सएप्प, फेसबुक या और किसी ऐसे ही दिखावे की दुनिया में जी रहे होंगे। अभी तक दिमाग को आफिस और घर-परिवार तक ही रखना था अब तीसरा ये मोबाइल फोन आ गया । इन सबमें अगर मस्तिष्क सामन्जस्य बैठा पाया तो अति उत्तम अन्यथा तनाव(चिंता) निश्चित है। इसे बहुत सरलता से चिंतन व ध्यान से रोक जा सकता है।

संतोष परम् सुखम

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आज लोग अपने दुख से कम बल्कि दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी हैं। इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है संतोष की कमी और दूसरे से बराबरी करने की चाहत। अपने आसपास देखिए लगभग हर दूसरा आदमी परेशान है, यूं तो हर आदमी परेशान है लेकिन कुछ ऐसे भी है जो बनावटी दिखाते हैं कि वो बहुत मस्त हैं ,याद रखिए अगर किसी से भी खुद की तुलना करोगे तो दुखी रहोगे इसीलिए आत्मसंतोष सभी दुखों का समाधान है। 

अभिषेक सिंह